भोपाल । मप्र के विधानसभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा ही नहीं बल्कि संघ और उसके अनुषांगिक संगठनों ने मोर्चा संभाल लिया है। खासकर मालवा निमाड़ में जहां संघ जमीनी स्तर पर सीटों का ब्योरा जुटा रहा है, वहीं विहिप-बजरंग दल ने भी अपनी गतिविधियां बढ़ा दी हैं। इससे अंचल में भाजपा को बड़ी जीत की उम्मीद जगी है। गौरतलब है कि मालवा-निमाड़ में 66 विधानसभा सीटें हैं। कहा जाता है कि इस क्षेत्र की अधिक सीटों पर जिसको जीत मिलती है उसकी ही सरकार बनती है। इसलिए भाजपा ने इस बार अपना अधिक फोकस इस अंचल पर किया है।
गौरतलब है की मालवा-निमाड़ को संघ और भाजपा का गढ़ माना जाता है। इस क्षेत्र में संघ काफी सक्रिय है। लेकिन 2018 में भाजपा इस अंचल की 66 में से केवल 27 सीटें ही जीत पाई। जबकि 2013 में पार्टी ने 57 सीटें जीती थी। इसलिए इस बार भाजपा को बड़ी जीत दिलाने के लिए सत्ता-संगठन के साथ ही संघ और उसके अनुषांगिक संगठन सक्रिय हो गए हैं। संघ के प्रमुख लोगों की राज्य में दौरे और गतिविधियां भी लगातार बढ़ रही हैं। अगस्त के प्रथम सप्ताह में संघ के पूर्व सरकार्यवाह सुरेश भैयाजी जोशी इंदौर प्रवास पर थे। उनसे मिलने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अचानक इंदौर पहुंच गए थे। दोनों के बीच करीब आधा घंटा मंत्रणा हुई थी। मुख्यमंत्री की इस ट्रांजिट विजिट से राजनीतिक गलियारों में चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया था। सीएम के अलावा स्थानीय नेता भी आजकल संघ के कार्यक्रमों में खूब दिखाई देने लगे हैं।
मालवा-निमाड़ सत्ता का द्वार
मालवा-निमाड़ अंचल को प्रदेश में सत्ता का द्वार कहा जाता है। इस इलाके में जिसने बढ़त बना ली, प्रदेश में सरकार भी उसी की बनती है। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को सबसे ज्यादा नुकसान यहीं हुआ था। इस बार भाजपा और संघ इस इलाके पर अत्यधिक ध्यान दे रहे हैं। दरअसल, यह चुनाव कांग्रेस और भाजपा दोनों के बीच कशमकश भरे होना है, इस संभावना को कोई नहीं नकार सकता है। यही कारण है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने इन चुनावों पर खास नजर बनाई हुई है। राजनीतिक विश्लेषकों का भी मानना है कि संघ और उसके अनुषांगिक संगठनों की राज्य में सक्रियता पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा है। इस वर्ष अब तक संघ, विहिप, बजरंग दल, दुर्गा वाहिनी आदि के कई कार्यक्रम इंदौर या आसपास के जिलों में हो चुके हैं। इंदौर में विश्व हिंदू परिषद की तीन दिवसीय प्रन्यासी मंडल व केंद्रीय प्रबंध समिति की बैठक जनवरी में हुई थी। इस बैठक में लव जिहाद, मतांतरण जैसे मुद्दों पर प्रस्ताव लाए गए थे। इसके बाद जुलाई में प्रांत बैठक भी इंदौर में आयोजित की गई थी। विहिप और बजरंग दल लगातार जनजागरण यात्रा, पुतला दहन, विरोध प्रदर्शन के जरिए भी माहौल बनाने का प्रयास कर रहे हैं। पिछले दिनों इंदौर में बजरंग दल-विहिप के कार्यकर्ताओं पर लाठीचार्ज भी सुर्खियों में छाया रहा था। इस मामले में मुख्यमंत्री को भी हस्तक्षेप करना पड़ा था।
इस बार दिख रहा समन्वय
वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था। हार की एक वजह संघ और भाजपा के बीच सामंजस्य के अभाव को भी माना जाता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को भाजपा का मातृ संगठन माना जाता है, मगर संघ कभी भी खुले तौर पर चुनावी गतिविधियों में हिस्सेदारी नहीं लेता है। पर्दे के पीछे रहकर भाजपा के लिए जमीन जरूर तैयार करता है। इस बार चुनाव में किसी तरह की कमी न रह जाए, इसके लिए संघ ने अभी से मैदानी पकड़ मजबूत करना शुरू कर दिया है। संघ के साथ ही उसके सहयोगी संगठन विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल, विश्व संवाद केंद्र पिछले एक साल से लगातार अपनी गतिविधियां बढ़ा रहे हैं।
जनआशीर्वाद यात्रा से माहौल
भाजपा जहां जनआशीर्वाद यात्रा से क्षेत्र में माहौल बना रही है तो विहिप-बजरंग दल शौर्य और जनजागरण यात्राओं के सहारे अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। संघ ने भी जमीनी स्तर के आकलन की प्रक्रिया को तेज कर रखा है और वर्तमान विधायकों के अलावा जहां कांग्रेस से विधायक हैं, उन स्थानों की स्थिति का भी ब्योरा जुटाया जा रहा है। संघ से जुड़े वाट्सएप समूहों और इंटरनेट मीडिया पेजों के माध्यम से अपनी गतिविधियों को प्रचारित करने का आग्रह भी स्वयंसेवकों से किया जा रहा है। डा. हेडगेवार जन्म शताब्दी सेवा न्यास ने 10 सितंबर को इंदौर में समवर्धिनी मातृ सम्मेलन का आयोजन भी किया था। इस सम्मेलन में 1500 से ज्यादा प्रबुद्ध महिलाओं ने सहभागिता की थी। आयोजक भले ही इस सम्मेलन को महिलाओं की समस्याओं पर चर्चा का माध्यम बताते हो, पर कहीं न कहीं इसके पीछे आगामी विधानसभा चुनाव ही थे।
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