कर्नाटक में स्कूली बच्चों को मिड-डे मील में अंडे दिए जाने के फैसले के खिलाफ पिछले साल खूब हंगामा बरपा. साधुओं और मठों ने सरकार के फैसले के खिलाफ आंदोलन करने की घोषणा की. लेकिन अब जो रिपोर्ट सामने आई है, उसके आंकड़े चौंकाने वाले हैं. मिड-डे मील में करीब 80 फीसदी बच्चों ने केले और चिक्की के विकल्प को दरकिनार करते हुए अंडे को चुना है. कर्नाटक सरकार ने कुपोषण से निपटने के लिए सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में छात्रों के लिए अंडे देने का फैसला किया था.
द इंडियन एक्स्प्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक,लोक शिक्षण विभाग की ओर से दिए गए आंकड़ों से पता चलता है कि 14 दिसंबर तक सरकारी स्कूलों में कक्षा 1 से 8 के बीच के 47 लाख 97 हजार छात्रों में से 38 हजार 37 लाख छात्रों ने अंडे, 3 लाख 37 हजार बच्चों ने केले और 2 लाख 27 हजार बच्चों ने चिक्की खाना पसंद किया. इस दौरान बाकी बच्चे अनुपस्थित रहे.
पिछले साल जुलाई में एक अध्ययन के बाद राज्य के स्कूल शिक्षा विभाग ने घोषणा की कि कक्षा 1 से 8 तक के बच्चे गर्म पके भोजन के अलावा अंडे, केले और चिक्की में से कुछ भी चुन सकते हैं. राखज्य भर में अंडे चुनने वाले 38 लाख 37 हजार छात्रों में से 15 लाख 67 हजार बच्चे बेलगावी डिवीजन से, 8 लाख 65 हजार बेंगलुरु डिवीजन से, 8 लाख 33 हजार कलबुर्गी डिवीजन से और 5 लाख 70 हजार बच्चे मैसूरु डिवीजन थे.
कुपोषण से लड़ने के लिए भोजन में अंडे जरूरी- शिक्षा मंत्री
द संडे एक्सप्रेस से बात करते हुए स्कूल शिक्षा मंत्री बीसी नागेश ने कहा, हमने यह सुनिश्चित करने के लिए सभी जिलों में मिड डे मील भोजन में अंडे दिए हैं कि कुपोषण की वजह से बच्चों की शिक्षा बाधित न हो. भोजन एक बहस का विषय है और इस पर सभी के अपने विचार हैं. अब कल्याण-कर्नाटक क्षेत्र से सकारात्मक प्रतिक्रिया मिलने के बाद हमने बाकी जिलों में भी कुपोषण से लड़ने के लिए भोजन में अंडे को शामिल करने का फैसला किया है.
धार्मिक नेताओं ने किया था अंडे देने का विरोध
पिछले साल सरकार के अंडे देने के फैसले का काफी विरोध हुआ था. धार्मिक नेताओं और मठों के प्रमुखों का कहना था कि मिड डे मील में अंडे देना शाकाहारी छात्रों के खिलाफ भेदभाव करने जैसा होगा. वहीं, लिंगायत द्रष्टा चन्नबासवानंद स्वामीजी ने कहा था अगर मिड डे मील में बच्चों को अंडे दिए गए तो स्कूल सैन्य होटलों में बदल जाएंगे. इसकी जगह अनाज और दालें देनी चाहिए. अगर नियम वापस नहीं लिया जाता है तो हम आंदोलन करेंगे.