सुप्रीम कोर्ट नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली 200 से ज्यादा याचिकाओं पर सोमवार को सुनवाई करेगा. इस बीच केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) देश के किसी भी नागरिक के क़ानूनी, लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन नहीं करता है. अभी भी पहले से चले आ रहे नियमों के मुताबिक विदेशी नागरिक भारत की नागरिकता हासिल कर सकते है या यहां शरण ले सकते है. उन नियमो में CAA के चलते कोई बदलाव नहीं किया गया है.
सरकार ने कहा है कि इमिग्रेशन पॉलिसी, नागरिकता के नियम ये सब नीतिगत मसले है, जिन पर संसद को फैसला करना होता है. ऐसे में इसके खिलाफ याचिकाकर्ताओं का अर्जी दाखिल करने का कोई औचित्य नहीं बनता. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में केंद्र से चार हफ्तों के अंदर जवाब मांगा था. शीर्ष अदालत ने जनवरी 2020 में साफ किया था कि वह केंद्र की बात सुने बिना सीएए के क्रियान्वयन पर रोक नहीं लगाएगी. न्यायमूर्ति ललित की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा था कि सीएए को चुनौती देने वाली याचिकाओं को तीन-न्यायाधीशों की पीठ को भेजा जाएगा.
232 याचिकाओं पर सुनवाई
प्रधान न्यायाधीश उदय उमेश ललित, न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट और न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी की पीठ के समक्ष केवल सीएए के मुद्दे पर 31 अक्टूबर को 232 याचिकाएं सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है, जिनमें ज्यादातर जनहित याचिकाएं हैं.
सीएए को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक बैच पर केंद्र सरकार से चार सप्ताह में जवाब मांगते हुए शीर्ष अदालत ने देश के उच्च न्यायालयों को इस मुद्दे पर लंबित याचिकाओं की सुनवाई पर रोक लगा दी थी. इस मुद्दे पर मुख्य याचिका इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) ने दायर की थी. याचिका दायर करने वाले अन्य महत्वपूर्ण लोगों में कांग्रेस नेता जयराम रमेश, राजद नेता मनोज झा, तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा और एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी भी शामिल हैं. मुस्लिम संगठन जमीयत उलमा-ए-हिंद, ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन, पीस पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, गैर-सरकारी संगठन ‘रिहाई मंच’, अधिवक्ता एमएल शर्मा और कानून के छात्रों ने भी इस अधिनियम को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया है.
(भाषा से इनपुट)
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