क्या आपने कभी सोचा है कि रिहेब सेंटर या मेंटल हेल्थ वाले अस्पतालों में लोग कैसे रहते हैं, उनका जीवन कैसा होता है, कैसी परिस्थितियों में वो ऐसी हालत तक पहुंच जाते हैं जहां उनका दिमागी संतुलन बिगड़ जाता है… यहां की अपनी एक अलग दुनिया होती है. वो अपने धुन में मस्त होते हैं. डॉक्टर, नर्स सब उनके सुधार के लिए लगातार प्रयास करते रहते हैं. ऐसी ही एक अनजान दुनिया में करीब दो साल पहले पी महेंद्रन और दीपा मिले थे. दोनों एक दूसरे के लिए अनजान थे लेकिन दोनों का मर्ज एक ही था. फिर कुछ पल साथ बिताने लगे, अपनी तकलीफों को साझा करने लगे. दोनों ही दिमागी रूप से टूट चुके थे. मानसिक स्वास्थ्य संस्थान (आईएमएच) चेन्नई में इनका सहारा सिर्फ डॉक्टर थे.
महेंद्रन और दीपा के बीच मोहब्बत पनपी. उस जगह ऐसा होना अपने आप में अजूबा था. क्योंकि इंसान का जब दिमाग ही सही नहीं होगा तो कैसे वो किसी से दिल लगा पाएगा. लेकिन ये सोच गलत है. दिल का और दिमाग का कोई कनेक्शन ही नहीं है ऐसा दीपा और महेंद्रन ने साबित कर दिया. शुक्रवार को पी महेंद्रन (42) स्थानीय मंदिर में दीपा (36) से शादी करेंगे. आईएमएच के 228 साल पुराने इतिहास में मरीजों की ये पहली शादी होगी.
पिता की मौत के बाद अकेली हो गई थी दीपा
रिश्तेदारों के बीच आपसी लड़ाई, अपने परिवार की संपत्ति को लेकर चिंता और डर के कारण महेंद्रन का जीवन रुक गया था. दीपा के पिता 2016 में गुजर गए थे. उसके बाद घर में मां और छोटी बहन के होने के बावजूद वो एकदम अकेली हो गई थी. उसके दिमाग में अकेलापन सवार हो गया. वो खुद को अलग-थलग करने लगी. किसी ने बात करती न बोलती. इसके बाद उसे आईएमएच लाया गया था. दोनों को आईएमएच कैंपस में अपना आना याद नहीं है. वे यहां पर उन कई लोगों में से हैं जिनके पास जाने के लिए कोई जगह नहीं है. कोई भी नहीं जो उनका इलाज खत्म होने के बाद भी सामान्य जीवन में वापस आने में मदद कर सके.
एक स्पेशल कैफे में काम करती है दीपा
कुछ महीने पहले जैसे ही उनके भ्रमित दिमाग को सामान्य स्थिति मिली उन्हें ‘हाफ वे होम’ में ट्रांसफर कर दिया गया. ये एक कैंपस होता है जहां पर इलाज के बाद घर जैसी फील होती है. यहां पर ज्यादा रोकटोक नहीं होती. ऐसा इसलिए बनाया जाता है ताकि मरीज फिर से घर पर जाकर पहले जैसा न हो जाए. ये उन लोगों के लिए होता है जो अपने घर से इतना टूट जाते हैं कि खतरा होता है कि वहां जाकर उनकी मेंटल स्थिति वैसी ही न हो जाए. महेंद्रन को बड़ी बहन ने चेन्नई शहर में कुछ साल तक अपने पास रखा था. वर्तमान में वो कैंपस में ही एक डेकेयर सेंटर के साथ काम कर रही हैं. ये उन लोगों के लिए एक जगह है, जिन्हें अकेले अपना दिन बिताने के लिए मदद की आवश्यकता होती है. दीपा मानसिक बीमारी और अन्य कमजोर वर्गों के लोगों को रोजगार देने के लिए रेस्तरां एम महादेवन के चेन्नई मिशन के साथ IMH द्वारा शुरू किए गए एक सामुदायिक कैफे कैफे R’vive में काम करती हैं.
महेंद्र ने किया था दीपा को प्रपोज
महेंद्रन मानते हैं कि दीपा के सामने अपनी भावनाओं को स्वीकार करना एक आवेगपूर्ण कदम था. लेकिन कई महीनों बाद उन्होंने फैसला ले लिया था कि वो दीपा से अपनी दिल की बात कह देंगे. दीपा के लिए वार्ड नंबर 20 महिला वार्ड से ‘हाफ वे होम’ जाना एक नए जीवन जैसा था. IMH कैंपस में द इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए, दीपा कहती हैं कि वह अपने पिता की मृत्यु के बाद शादी के बारे में बिल्कुल नहीं सोच रही थीं. दीपा ने कहा कि यदि आप वार्ड में हैं तो ऐसे मरीज मिलते हैं जिन्हें अपने बारे में कोई जानकारी नहीं है. कुछ हिंसक हैं, कुछ दु:ख और अवसाद से गुजर रहे हैं. मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि उसने मुझे पहली बार शादी के लिए प्रपोज किया.
घर से फिर लौट आई दीपा
दीपा ने बताया,’ बाद में, मैं घर वापस चली गई लेकिन मुझे फिर से लौटना पड़ा. जब मुझे एहसास हुआ कि वह महेंद्रन वह व्यक्ति हो सकता है जो मेरे लिए मजबूती से खड़ा हो सकता है और मेरे जीवन को एक नई दिशा मिल सकती है. महेंद्रन एक लोकप्रिय फिल्म गीत “कल्याण मलाई” गाते हैं. एस पी बालसुब्रमण्यम का यह गाना विवाह के कई चित्रों को प्रदर्शित करता है.’गायन समाप्त होने के तुरंत बाद वह मुझसे कहता है कि हम एक नया जीवन बना रहे हैं. भले ही मैं आपको ठीक से न खाने के लिए गुस्सा हो या डांटूं. ये सिर्फ आपके स्वास्थ्य के लिए है. वो आगे कहती हैं, ‘महेंद्रन कहता है कि हमारा मिलना कई चीजों को पुनर्जीवित करने जैसा था. तुम मेरी मां, मेरी चाची, मेरी बहन, मेरी सबसे अच्छी दोस्त और अब सब कुछ हो.’
दिमाग के मरीज क्या करेंगे प्यार की बात?
यह पूछे जाने पर कि 228 वर्षों में कैदी की शादी क्यों नहीं हुई ? आईएमएच की निदेशक डॉ पूर्ण चंद्रिका हंस पड़ीं. वो कहती हैं कि देखो, यह शहर के भीतर एक छोटे से गांव या बस्ती की तरह है और यह बाहर की दुनिया से अलग नहीं है. वह कहती हैं कि पर पढ़ने वाले स्नातकोत्तर छात्रों की शादियां तो हुई थीं, लेकिन कैदियों ने यहां शायद ही कभी आपस में बातचीत की हो. उनका (महेंद्रन और दीपा) रिश्ता सबसे पहले मेरे पास एक शिकायत के रूप में आया था कि वे हमेशा बाहर घूमते रहते हैं. मैंने कुछ प्रतिबंध लगाए. लेकिन मुझे एहसास हुआ कि यह उनके लिए अनूठा था. मैं सोचती थी कि यह यहां कैसे संभव है… लेकिन आखिरकार जब मैंने उन्हें बैठाया और बात की तो सारा मामला समझ आ गया.
घर तलाश रहे हैं दीपा-महेंद्रन
डॉ चंद्रिका कहती हैं कि सीमित वार्डों से अलग ‘हाफ वे होम’ के कैदियों के पास अपना फोन, बैंक खाता या निजी जीवन हो सकता है. वे बाहर काम पर जा सकते हैं या फिल्म देख सकते हैं. विकलांगता अधिकार गठबंधन उन्हें अपनी कमाई बचाने और बैंक खातों का प्रबंधन करने में मदद करता है। कभी-कभी हम उन्हें अधिक खर्च करने से रोकते भी हैं. वो आगे कहती हैं, ‘शुरुआत में मैंने जो प्रतिबंध लगाए थे बावजूद इसके अब प्यार की जीत हुई है. शादी के बाद वो कैंपस में नहीं रह सकते. मैं थोड़ा चिंतित थी कि उन्हें यह कैसे बताऊं. लेकिन दीपा ने मुझे बताया कि वे पहले से ही परिसर के पास एक घर की तलाश कर रहे हैं ताकि हम सब एक साथ रह सकें. महेंद्रन पहले से ही हमारे डेकेयर सेंटर में काम कर रहे है और बाहर एक छोटा सा पार्ट-टाइम काम भी कर रहे हैं’.
1794 में बना था आईएमएच
IMH भारत का दूसरा सबसे बड़ा मानसिक अस्पताल है. इसे ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1794 में 20 यूरोपीय लोगों के मानसिक रोगों के इलाज के लिए एक शरण के रूप में स्थापित किया था. वर्तमान में इसमें 246 महिलाओं सहित 723 कैदी हैं. इसमें सशस्त्र कर्मियों द्वारा संरक्षित एक सुविधा भी है, जिसमें आपराधिक पृष्ठभूमि वाले 23 पुरुष और दो महिलाएं बंद हैं. औसत दिन में IMH को लगभग 20 रोगी मिलते हैं, उनमें से अधिकांश परिवार द्वारा लाए जाते हैं, और कम से कम चार-पांच रेलवे या राज्य पुलिस द्वारा लाए जाते हैं.
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