ब्रिटिश राज में आदिवासियों पर हो रहे अत्याचार और अन्याय को देखकर एक संत ने धनुष-बाण उठा लिए और ब्रिटिश राज के खिलाफ सबसे बड़े आदिवासी संघर्ष रम्पा विद्रोह का ऐलान कर दिया. कभी महात्मा गांधी के आदर्शों पर चलने वाले इस युवा संत ने जब विद्रोह का बिगुल बजाया तो क्रांतिवीर बन अंग्रेजों की जड़ें हिला दीं. ये युवा संत कोई और नहीं बल्कि अल्लूरी सीताराम राजू थे. रम्पा विद्रोह के दौरान कई ब्रिटिश चौकियां और पुलिस थानों को फूंका गया और अंग्रेजों के हथियारों को लूटकर ही उनसे मुकाबला किया गया. इन्हीं अल्लूरी सीताराम राजू की आंशिक झलक हालिया रिलीज फिल्म RRR के लीड अभिनेता रामचरन के किरदार में दिखी. इस फिल्म की कहानी काल्पनिक है लेकिन किरदार और उसका नाम असल सीताराम राजू से प्रेरित है. आज उनकी जयंती है, ऐसे में TV9 की खास सीरीज के माध्यम से हम उन्हें नमन करते हैं.
18 वर्ष की उम्र में बन गए थे संन्यासी
अल्लूरी सीताराम राजू का जन्म 4 जुलाई 1897 को भीमावरम के पास पंडरंगी गांव (अब यह स्थान आंध्रप्रदेश में है, ब्रिटिश राज के दौरान यह मद्रास प्रेसीडेंसी था) में हुआ था. उनके पिता का नाम वेंकट रामा राजू और माता का नाम सूर्यनारायणम्मा था. जब वह कम उम्र के थे, तभी उनके पिता का निधन हो गया था ऐसे में उनका पालन पोषण चाचा राम कृष्णम राजू ने किया जो गोदावरी जिले के नरसापुर इलाके में रहते थे. हाईस्कूल करने के बाद अल्लूरी अपनी बहन और भाई के साथ विशाखापत्तनम में रहने लगे, लेकिन अचानक चौथे वर्ष में उन्होंने स्नातक की पढ़ाई छोड़ दी और संन्यासी बन गए.
आदिवासियों के उत्पीड़न के खिलाफ उठाई आवाज
संन्यासी बनने के बाद अल्लूरी सीताराम राजू ने विशाखापत्तनम, गोदावरी और उसके आसपास के इलाकों के जंगलों में आदिवासियों पर हो रहे अत्याचारों को देखा. दरअसल ब्रिटिश राज के दौरान 1882 में मद्रास वन अधिनियम पारित कर दिया गया था. इसके तहत आदिवासी लोगों को पारंपरिक पोडु खेती करने से रोक दिया गया था, क्योंकि ठेकेदार इन आदिवासियों का प्रयोग मजदूर के रूप में करना चाहते थे, जो इससे इन्कार करते थे उनसे लगान वसूला जाता था और न देने पर अत्याचार किए जाते थे.. इसी अत्याचार को रोकने के लिए अल्लूरी सीताराम राजू ने आवाज बुलंद की.
विरोध के लिए पहले अपनाया गांधीवादी तरीका
अल्लूरी सीताराम राजू महात्मा गांधी से प्रभावित थे, ऐसे में उन्होंने 1920 में सबसे पहले विरोध का गांधीवादी तरीका अपनाया और शराब पीने पर रोक लगाने, खादी पहनने, पंचायत अदालतों का पक्ष लेते हुए ब्रिटिश अदालतों का बहिष्कार करना शुरू कर दिया. हालांकि इसका असर कम हुआ क्योंकि ये राजनीतिक आंदोलन माना जाने लगा और अल्लूरी सीताराम राजू ब्रिटिश पुलिस की नजरों में आ गए.
कर दिया रम्पा विद्रोह का ऐलान
1922 में इस युवा संत ने विद्रोह का तरीका बदल दिया और हथियार उठाकर रम्पा विद्रोह का ऐलान कर दिया, गोदावरी और आसपास के जिलों के आदिवासियों को संगठित कर ब्रिटिश राज की कई पुलिस चौकियों, थानों पर हमला किया गया और कई अंग्रेज अफसरों की हत्या कर दी गई. अब तक आदिवासी धनुष बाण से ही अंग्रेजों का मुकाबला कर रहे थे, रम्पा विद्रोह के दौरान थानों को लूटकर गोला-बारुद और बंदूकें लूटीं गईं और आदिवासियों ने इनसे अंग्रेजों का मुकाबला करना शुरू कर दिया. आदिवासी और अन्य ग्रामीणों ने उनका भरपूर साथ दिया.
‘जंगल के नायक’ की उपाधि दी गई
अल्लूरी सीताराम राजू ने रम्पा विद्रोह के दौरान गोरिल्ला युद्ध की रणनीति अपनाई, इस दौरान आदिवासियों ने उन्हें जंगल के नायक की उपाधि दी गई. लगातार दो साल तक वे अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष करते रहे. रम्पा विद्रोह को दबाने के लिए अंग्रेजों ने कई प्रयास किए, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिल सकी. आदिवासियों के समर्थन की वजह से वह लगातार अंग्रेजों को चकमा देते रहे.
महज 27 वर्ष की उम्र में पाई वीरगति
अल्लूरी सीताराम राजू ने अंग्रेजों का मुकाबला हमेशा धनुष बाण से ही किया, उनका निशाना बेहद अचूक था, वर्ष 1924 में ब्रिटिश पुलिस के अधिकारियों ने उन्हें चिंतापल्ले के जंगलों से पकड़ लिया. इतिहासकारों के मुताबिक कोरूयूरु गांव में पेड़ से बांधकर उन्हें गोली मार दी गई और यह वीर क्रांतिकारी महज 27 साल की उम्र में अपनी जान देश पर न्योछावर कर गया.
आंध्रप्रदेश में मनाया जाता है उत्सव
अल्लूरी सीताराम राजू की जयंती पर हर साल 4 जुलाई को आंध्रप्रदेश में उत्सव मनाया जाता है. उनका स्मारक आंध्रप्रदेश के कृष्णादेवीपेटा गांव में है. 1986 में भारत सरकार ने स्वतंत्रता संघर्ष में योगदान उनके शौर्य को नमन करते हुए एक डाक टिकट जारी किया था. 9 अक्टूबर 2017 को संसद परिसर में भी सीतारात राजू की एक प्रतिमा स्थापित की गई थी.