दुनिया भर के मुसलमानों के लिए सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र महीना यानी रमजान (Ramadan 2022) शुरू हो रहा है. वैसे, रमजान के महीने की शुरुआत चांद के दिखाई देने पर निर्भर करती है. इस्लामी कैलेंडर के नौवें महीने को रमजान कहा जाता है. इस पूरे महीने मुसलमान सूर्योदय के बाद और सूर्यास्त के पहले भोजन या पानी ग्रहण नहीं करते. रोजे (Roza) के दौरान वे सूर्योदय से पहले सहरी खाते हैं, फिर सूर्यास्त होने तक पानी का घूंट या थूक भी नहीं निगलते. सूर्यास्त के बाद रोजा इफ्तार (Iftar) किया जाता है. उपवास के अलावा मुसलमानों को इस पूरे महीने अपने विचारों में शुद्धता रखना और अपनी बातों से किसी को नुकसान न पहुंचाना जरूरी होता है.
रमजान के पाक महीने में मुस्लिम समाज पूरी तरह से इबादत करता है. रमजान के दौरान मुसलमान किसी भी गलत कार्य करने से बचता है. इस दौरान किसी को अपशब्द बोलने, लड़ाई और झूठ बोलने की मनाही होती है. साथ ही स्मोकिंग और शराब का सेवन भी वर्जित माना जाता है. रमजान के 30 रोजे पूरे होने के बाद ही ईद-उल-फितर का त्योहार मनाया जाता है. इस बार ईद का पर्व 2 या 3 मई को मनाया जाएगा. ईद-उल-फितर को मीठी ईद कहा जाता है क्योंकि इस दिन घरों में सेवईं बनाने की पंरपरा है. ये पर्व खुशियों और भाईचारे का मानक है. इस दिन लोग गिले-शिकवे भूलाकर एक-दूसरे के प्यार से गले मिलते हैं.
इन मामलों में रोजा रखने की है छूट
इस्लाम को मानने वाले हर बालिग पर रोजा फर्ज है, केवल उन्हें छूट दी गई है जो बीमार हैं या यात्रा पर हैं. इसके अलावा जो औरतें प्रेग्नेंट हैं या फिर पीरियड्स से हैं, उन्हें भी छूट दी गई है. इसके अलावा बच्चों को भी रोजा रखने से छूट दी गई है. हालांकि, पीरियड्स के दौरान जितने रोजे छूटेंगे, उतने ही रोजे उन्हें बाद में रखने होते है. वहीं, बीमारी के दौरान रोजा रखने की छूट है. इसके बावजूद अगर कोई बीमार रहते हुए रोजा रखता है तो उसे अपनी जांच के लिए ब्लड देना या फिर इंजेक्शन लगवाने की छूट है, लेकिन रोजे की हालत में दवा खाने की मनाही की गई है.
ऐसे शुरू हुई रोजा रखने की परंपरा
माना जाता है कि इस्लाम में रोजा रखने की परंपरा दूसरी हिजरी में शुरू हुई है. जब मुहम्मद साहब मक्के से हिजरत (प्रवासन) कर मदीना पहुंचे तो उसके एक साल बाद मुसलमानों को रोजा रखने का हुक्म आया था. रमजान में शब-ए-कद्र की रात बेहद अहम मानी जाती है. इस दिन रात भर इबादत के बाद मुस्लिम समुदाय के लोग अपने रिश्तेदारों और अजीजों की कब्रों पर सुबह-सुबह फातिहा पढ़कर उनके मोक्ष के लिए दुआ मांगते हैं.